१६ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि ॥ ॥ जप ॥

को जापै दिसै दूरि ॥ गावै को वेखै हादरा हदूरि ॥ कथना कथी न आवै तोटि ॥ कथि कथि कथी कोटी कोटि कोटि ॥ देदा दे लैदे थकि पाहि ॥ जुगा जुगंतरि खाही खाहि ॥ हुकमी हुकम चलाए राहु ॥ नानक विगसै वेपरवाहु ॥३॥ साचा साहिबु साचु नाइि भाखिआ भाउ अपारु ॥ आखहि मंगहि देहि देहि दाति करे दातारु ॥ फेरि कि अगै रखीझै जितु दिसै दरबारु ॥ मुहौ कि बोलणु बोली जितु सुणि धरे पिआरु ॥ अंमृत वेला सचु नाउ वडिआई वीचारु ॥ करमी आवै कपड़ा नदरी मोखु दुआरु ॥ नानक एवै जाणीऔ सभु आपे सचिआरु ॥४॥ थापिआ न जाइि कीता न होइि ॥ आपे आपि निरंजनु सोहि ॥ जिनि सेविआ तिनि पाइिआ मानु ॥ नानक गावीऔ गुणी निधानु ॥ गावीऔ सुणोझै मनि रखीझै भाउ ॥ दुखु परहरि सुखु घरि लै जाइि ॥ गुरमुखि नादं गुरमुखि वेदं गुरमुखि रहिआ समाई ॥ गुरु ईसरु गुरु गोरखु बरमा गुरु पारबती माई ॥ जे हउ जाणा आखा नाही कहणा कथनु न जाई ॥ गुरा इिक देहि बुझाई ॥ सभना जीआ का इिकु दाता सो मै विसरि न जाई ॥५॥ तीरथि नावा जे तिसु भावा विणु भाणे कि नाइि करी ॥ जेती सिरठि उपाई वेखा विणु करमा कि मिलै लई ॥ मति विचि रतन जवाहर माणिक जे इिक गुर की सिख सुणी ॥ गुरा इिक देहि बुझाई ॥ सभना जीआ का इिकु दाता सो मै विसरि न जाई ॥६॥ जे जुग चारे आरजा होर दसूणी होइि ॥ नवा खंडा विचि जाणीऔ नालि चलै सभु कोहि ॥ चंगा नाउ रखाइि कै जसु कीरति जगि लेइि ॥ जे तिसु नदरि न आवई त वात न पुछ के ॥ कीटा अंदरि कीटु करि दोसी दोसु धरे ॥ नानक निरगुणि गुणु करे गुणवंतिआ गुणु दे ॥ तेहा कोहि न सुझई जि तिसु गुणु कोहि करे ॥७॥ सुणि सिध पीर सुरि नाथ ॥ सुणिझै धरति धवल आकास ॥ सुणिझै दीप लोअ पाताल ॥ सुणि पोहि न सकै कालु ॥ नानक भगता सदा विगासु ॥ सुणि दूख पाप का नासु ॥८॥ सुणिझै ईसरु बरमा इिंदु ॥ सुणिझै मुखि सालाहण मंदु ॥ सुणिझै जोग जुगति तनि भेद ॥ सुणिझै सासत सिमृति वेद ॥ नानक भगता